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वस्तु की प्रकृति एवं उदासीनता वक्र का आकार

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वस्तु ( GOODS ) - वस्तु के अन्तर्गत मूर्त या अमूर्त पदार्थ को शामिल किया जाता है जो मनुष्य की  आवश्यकता को संतुष्ट करते हैं। अर्थात वस्तु का उपभोग उपभोक्ता की इच्छानुसार होता है। अगर किसी वस्तु के प्रति उपभोक्ता की इच्छा नहीं है तो वह उस वस्तु का क्रय नहीं करना चाहेगा। जैसे कपड़ा, भोजन, जूते, मोबाईल आदि वस्तु के उदाहरण हैं। वस्तुएँ प्रतियोगी या पूरक हो सकती हैं। जब दो वस्तुओं का उपभोग एक साथ  होता है तो उसे पूरक वस्तुएँ तथा एक वस्तु के स्थान पर दूसरी वस्तु के उपभोग की संभावना रहने पर दोनों वस्तुएं प्रतियोगी वस्तुएँ होती हैं। जैसे कार और टायर, कलम और स्याही आदि एक दूसरे के पूरक तथा कोकोकोला एवं पेप्सी एक दूसरे के प्रतियोगी हैं। वस्तुओं को आवश्यकता, आरामदायक या विलासिता की वस्तु के रूप में विभाजित  किया जाता है। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि आवश्यकता, आरामदायक और विलासिता वस्तु के रूप में वस्तु का विभाजन आय सापेक्ष है। ऐसा इसलिए कि एक वस्तु किसी उपभोक्ता के लिए आरामदायक तथा किसी दूसरे उपभोक्ता के लिए विलासिता की वस्तु हो सकती है। वस्तुएँ निकृष्ट या सामान्य हो स...

केन्द्रीय बैंक- अर्थ, परिभाषा और कार्य

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केन्द्रीय बैंक- अर्थ, परिभाषा और कार्य     केन्द्रीय बैंक का अर्थ किसी भी देश की बैंकिंग व्यवस्था में उस देश के केन्द्रीय बैंक का एक अहम स्थान होता है। केन्द्रीय बैंक देश की पूरी मौद्रिक एवं बैंकिंग व्यवस्था का नियंत्रण करता है। पूरी बैंकिंग व्यवस्था में केन्द्रीय बैंक का सर्वोच स्थान प्राप्त है। यह बैंकों के लिए मित्र , दार्शनिक और पथ प्रदर्शक  का कार्य करता है। यह सरकार की ओर से मौद्रिक नीति का निर्माण और क्रियान्वयन करता है। प्रत्येक देश में एक केन्द्रीय बैंक होता है। इंग्लैंड में बैंक ऑफ इंग्लैंड , अमेरिका में फेडरल रिजर्व सिस्टम तथा भारत में भारतीय रिजर्व बैंक आदि केन्द्रीय बैंक हैं। आरबीआई की स्थापना 1 अप्रैल 1935 ई. में भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 के तहत हुई।      एक केन्द्रीय बैंक को ऐसी वित्तीय संस्था के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसे राष्ट्र या राष्ट्रों  के  समूह के लिए धन सृजन एवं ऋण प्रदान करने के लिए विशेषाधिकार दिया जाता है। विश्व में केन्द्रीय बैंक का विकास v     विश्व का सबसे पुराना केन्द्रीय बैंक बैंक ऑफ ...

मुद्रा पूर्ति निर्धारण का सिद्धांत

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  मुद्रा पूर्ति के निर्धारण का सिद्धांत मुद्रा पूर्ति के निर्धारण के संबंध में दो सिद्धांत हैं।-    पहले  सिद्धांत  के  अनुसा र  अर्थव्यवस्था  में  मुद्रा  की  पूर्ति  का  निर्धारण  केन्द्रीय  बैंक  के  द्वारा बहिर्जात रूप से होता है। प्रायः प्रत्येक देश का केन्द्रीय बैंक उस  देश की  मुद्रा का निर्गमन करता है। भारत में मुद्रा निर्गमन का कार्य भारतीय रिजर्व बैंक को आवंटित है। आरबीआई एक रुपया के नोट को छोड़कर सभी मूल्य के नोटों का निर्गमन करता है। एक रुपया के नोट तथा 1, 2 और 5 रुपये मूल्य के सिक्के वित्त विभाग के द्वारा जारी किए जाते हैं तथा इनका वितरण आरबीआई के द्वारा होता है। आरबीआई ने मुद्रा निर्गमन के लिए न्यूनतम आवश्यक रिजर्व सिद्धांत का पालन करता  है। यह   इसके लिए न्यूनतम 115 करोड़ रुपये का सोना तथा 85 करोड़ रुपये का विदेशी विनिमय रिजर्व आवश्यक रूप से रखता है    दूसरे सिद्धांत के अनुसार मुद्रा की पूर्ति का निर्धारण आर्थिक क्रियाओं में परिवर्तन के द्वारा अन्तर्जात रूप...

परिवर्तनशील अनुपातों का नियम - A UNIVERSAL LAW

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उत्पादन फलन

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उत्पादन क्या है?   अर्थशास्त्र में किसी वस्तु के रूप, स्थान समय एवं आकार में परिवर्तन करने में एक नई उपयोगिता का निर्माण होता है जिसे उत्पादन कहा जाता है।  अर्थात यह कहा जा सकता है कि किसी वस्तु में नई उपयोगिता का  सृजन करना ही उत्पादन कहलाता है।  जैसे एक लकड़ी के लॉग  से फर्नीचर का  निर्माण उत्पादन है।  जब हम किसी वस्तु के रूप, स्थान, समय एवं आकर में परिवर्तन करना चाहते हैं तो हमें कुछ साधनों की आवश्यकता होती है। जैसे श्रम पूँजी भूमि तथा साहस। इन चारों साधनों को आगत कहा जाता है। अतः हम कह सकते हैं कि उपयोगिता के सृजन में आगतों  का निर्गत में रूपांतरण होता है, जिसे उत्पादन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि आगत का निर्गत में रूपांतरण ही उत्पादन है।   उत्पादन में न केवल वस्तुओं को ही शामिल किया जाता है बल्कि पेशेवर लोगों की सेवाओं को भी उत्पादन के अंतर्गत शामिल किया जाता है। जैसे एक चिकित्सक के द्वारा चिकित्सा  करना   सेवा का उत्पादन है।  उत्पादन फलन आगत और निर्गत के बीच के फलनत्मक तथा तकनीकी संबंध को ...