केन्द्रीय बैंक- अर्थ, परिभाषा और कार्य



केन्द्रीय बैंक- अर्थ, परिभाषा और कार्य   

केन्द्रीय बैंक का अर्थ

किसी भी देश की बैंकिंग व्यवस्था में उस देश के केन्द्रीय बैंक का एक अहम स्थान होता है। केन्द्रीय बैंक देश की पूरी मौद्रिक एवं बैंकिंग व्यवस्था का नियंत्रण करता है। पूरी बैंकिंग व्यवस्था में केन्द्रीय बैंक का सर्वोच स्थान प्राप्त है। यह बैंकों के लिए मित्र, दार्शनिक और पथ प्रदर्शक  का कार्य करता है। यह सरकार की ओर से मौद्रिक नीति का निर्माण और क्रियान्वयन करता है। प्रत्येक देश में एक केन्द्रीय बैंक होता है। इंग्लैंड में बैंक ऑफ इंग्लैंड, अमेरिका में फेडरल रिजर्व सिस्टम तथा भारत में भारतीय रिजर्व बैंक आदि केन्द्रीय बैंक हैं। आरबीआई की स्थापना 1 अप्रैल 1935 ई. में भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 के तहत हुई।

    एक केन्द्रीय बैंक को ऐसी वित्तीय संस्था के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसे राष्ट्र या राष्ट्रों के समूह के लिए धन सृजन एवं ऋण प्रदान करने के लिए विशेषाधिकार दिया जाता है।

विश्व में केन्द्रीय बैंक का विकास

v  विश्व का सबसे पुराना केन्द्रीय बैंक बैंक ऑफ स्वीडन है जिसकी स्थापना 1668 ई. में डच व्यापारियों की मदद से की गई थी।

v 1694 ई. में ब्रिटिश सरकार के अनुरोध पर स्कॉटिश व्यापारी विलियम पैटर्सन द्वारा बैंक ऑफ इंग्लैंड की स्थापना युद्ध के वित्तपोषण के लिए की गई।

v  अमेरिका के केन्द्रीय बैंक फेडरल रिजर्व सिस्टम (FED) की स्थापना 1913 ई. में अमेरिकी कांग्रेस द्वारा बिल पारित कर बनाया गया।

v  भारत के केन्द्रीय बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना 1935 ई. में हुई।

v चीन में केन्द्रीय बैंक के रूप में पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना की स्थापना 1979 ई. में की गई।

( शुरुवाती दिनों में केन्द्रीय बैंक की स्थापना निजी स्वामित्व के अंतर्गत होता था।  इनका प्रबंधन तथा नियंत्रण निजी इकाइयों के द्वारा होता था, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ज्यादातर केन्द्रीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया है।

 केन्द्रीय बैंक की परिभाषा 

अर्थशास्त्रियों तथा वित्त विशेषज्ञों ने केन्द्रीय बैंक को इसके कार्यों के आधार पर परिभाषित करने का प्रयास किया है। केन्द्रीय बैंक की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ निमन्वत हैं- 

v प्रो. केन्ट – “केन्द्रीय बैंक ऐसी संस्था है जो सार्वजनिक हित में मुद्रा की मात्र में विस्तार और संकुचन का कार्य सौंपा गया  हो।”

v वेरा स्मिथ – “ केन्द्रीय बैंकिंग वह व्यवस्था है जिसमें केवल एक बैंक को नोट निर्गमन का सम्पूर्ण तथा आंशिक एकाधिकार होता है।”

v डी-कॉक – “केन्द्रीय बैंक की मान्यता उस बैंक को दी जाती है जो देश की मौद्रिक और बैंकिंग प्रणाली पर शिखर पर होता है ”

v सैम्यूलसन – “ केन्द्रीय बैंक एक ऐसा बैंक होता है जिसे देश की सरकार अपने लेन-देन के कार्य करने, व्यावसायिक बैंकों को नियंत्रित करने तथा राष्ट्र की मुद्रा की पूर्ति तथा साख व्यवस्था के नियंत्रण में सहयोग देने के लिए स्थापित करती है।”

v किश और एल्किन – “ केन्द्रीय बैंक वह बैंक है जिसका मुख्य कार्य मौद्रिक मान की स्थिरता को बनाए रखना है।”

    आधुनिक समय में केन्द्रीय बैंक की क्रियाएँ मुख्यतः चलन एवं साख के विकास और नियमन से  संबंधित है। अतः केन्द्रीय बैंक को निम्न शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है।

"किसी देश की बैंकिंग और मौद्रिक व्यवस्था की वह शीर्षस्थ संस्था जो चलन और  साख का विकास, नियमन एवं नियंत्रण राष्ट्र के आर्थिक विकास और आर्थिक स्थिरता के उद्देश्य से करती है, उसे केन्द्रीय बैंक कहा जाता है।"     

केन्द्रीय बैंक के कार्य 


 1. मुद्रा का निर्गमन

      देश की मुद्रा का निर्गमन का एकाधिकार देश के केन्द्रीय बैंक को होता है। केन्द्रीय बैंक के द्वारा मुद्रित तथा निर्गमित मुद्रा पूरे देश में असीमित वैध मुद्रा होती है। केन्द्रीय बैंक इस प्रकार पूरे देश में मुद्रा की पूर्ति तथा करेंसी का विनियमन करता है। मुद्रा निर्गमन के लिए केन्द्रीय बैंक को सोना या विदेशी मुद्रा या दोनों को रिजर्व रखना पड़ता है। यह नियम प्रत्येक देश में अलग अलग होता है। भारत में न्यूनतम आरक्षित प्रणाली को अपनाया गया है। भारत का केन्द्रीय बैंक मुद्रा निर्गमन के लिए न्यूनतम 100 करोड़ रुपये का सोना तथा 85 करोड़ रुपये का विदेशी विनिमय रिजर्व को आरक्षित रख कर असीमित मुद्रा की छपाई कर सकता है, लेकिन अर्थव्यवस्था की आवश्यकता के अनुरूप यह बैंक नोटों की छपाई करता है।

      मुद्रा निर्गमन का एकाधिकार केन्द्रीय बैंक को देने से निम्नलिखित लाभ हैं-

v मुद्रा प्रणाली में एकरूपता होती है।

v मुद्रा प्रणाली पर नियंत्रण रखना आसान होता है।

v मुद्रा पूर्ति में लोचशीलता रहती है।

v देश की मुद्रा पर जनता का विश्वास रहता है।

2. सरकार का एजेंट, सलाहकार तथा बैंक

केन्द्रीय बैंक सरकार का एजेंट, सलाहकार तथा बैंक के रूप में कार्य करता है। सरकार के बैंकर के रूप में केन्द्रीय बैंक सरकारी विभागों, राज्य एवं स्थानीय सरकारों तथा विभिन्न परिषदों निगमों की जमा को अपने पास रखता है। केन्द्रीय बैंक सरकारों को ऋण देता है। इस प्रकार केन्द्रीय बैंक सरकार का जमा स्वीकार करता है तथा सरकार को ऋण देता है।

      सरकार के एजेंट के रूप में यह सरकार की तरफ से जनता से ऋण लेकर सरकार के खाते में जमा करता है। यह सरकार के लिए सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद बिक्री करता है।

सरकार के सलाहकार के रूप में यह मौद्रिक और वित्तीय मामले में सरकार को सलाह देता है कि जनता से ऋण लेने की परिस्थितियाँ कैसी हैं।  

3. बैंक का बैंक-

      जिस प्रकार एक व्यावसायिक बैंक आम जनता से जिस प्रकार का व्यवहार करता है उसी प्रकार केन्द्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों के साथ व्यवहार करता है। केन्द्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों की कुल जमा का एक हिस्सा  नकद कोष  के रूपअनिवार्य रूप से अपने पास रखता है। इस प्रकार के प्रावधान से व्यावसायिक बैंकों के नकद कोष का केन्द्रीयकरण हो जाता है तथा केन्द्रीय बैंक के पास काफी रकम जमा हो जाती है और पूरी बैंकिंग व्यवस्था मजबूत होती है।  

 केन्द्रीय बैंक के पास केन्द्रीकृत नकद कोष अर्थव्यवस्था में बड़े तथा लोच साख का आधार  निर्मित करता है। इस प्रकार की व्यवस्था शायद नहीं हो पाती यदि सारे कोष व्यक्तिगत बैंकों में बिखरा हुआ जमा  होता। इस संबंध में डी-कॉक ने कहा है कि व्यावसायिक बैंकों की बढ़ती तरलता नकद कोष के केन्द्रीयकरण का अप्रत्यक्ष प्रमाण है। 

    यहाँ ध्यान देने की बात है कि केन्द्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों को इस जमा पर कोई ब्याज नहीं देता है।

4. साख नियंत्रण –

       अर्थव्यवस्था मे आर्थिक स्थिरता लाने के लिए केन्द्रीय बैंक का एक महत्वपूर्ण कार्य साख पर नियंत्रण करना है। यह व्यावसायिक बैंकों के कर्ज देने की क्षमता का नियमन करता है। आधुनिक अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रियाओं का स्वरूप एवं स्तर बहुत हद तक साख की लागत और उपलब्धता पर निर्भर करता है। सस्ते साख से  निवेश को प्रोत्साहन मिलता है तथा महंगे साख से निवेश हतोत्साहित होता है। केन्द्रीय बैंक विभिन्न तरीकों से साख की मात्रा को नियंत्रित और विनियमित करता है।

 साख नियंत्रण के लिए केन्द्रीय बैंक दो प्रकार की विधियों का प्रयोग करता है। पहली विधि को परिमाणात्मक विधि तथा दूसरी को गुणात्मक विधि कहा जाता है। परिमाणात्मक विधि के अंतर्गत बैंक दर नीति, खुले बाजार प्रचालन, आरक्षित कोष अनुपात में परिवर्तन की नीति अपनाई जातीहै। जबकि गुणात्मक नीति के अंतर्गत साख का राशनिंग, उपभोक्ता साख पर नियंत्रण, नैतिक दबाव तथा प्रत्यक्ष कार्यवाही आदि नीतियों को अपनाया जाता है।

5. विदेशी विनिमय रिजर्व का प्रबंधक और संरक्षक

      प्रत्येक देश का केन्द्रीय बैंक राष्ट्रीय या आंतरिक कोष तथा वाह्य या अंतर्राष्ट्रीय कोष को अपने पास संरक्षित रखता है। राष्ट्रीय कोष के अंतर्गत बहुमूल्य धातुओं जैसे सोना को रखा जाता है। यह कोष देश की सम्पूर्ण मौद्रिक अर्थव्यवस्था का आधार का कार्य करता है।

      विदेशी व्यापार, विदेशी ऋण तथा विदेशी अनुददान से प्राप्त विदेशी मुद्रा देश केन्द्रीय बैंक के पास जमा रहती है। केन्द्रीय बैन इन विदेशी विनिमय रिजर्व का संरक्षक और प्रबंधक होता है।

 केन्द्रीय बैंक के इस कार्य के पीछे निम्न दो कारण हैं-

v राष्ट्रीय मुद्रा के मूल्य को सुरक्षित रखना

v व्यापार संतुलन की प्रतिकूलता को समाप्त करना।

वर्तमान समय में विदेशी विनिमय- कोष को सुरक्षित रखने तथा उसमें वृद्धि एवं उसके नियंत्रण करने का महत्व दिन-प्रति-दिन बढ़त जा रहा है।

6. समाशोधन गृह

देश के अन्य सभी बैंकों के नकद कोष केन्द्रीय बैंक के पास जमा रहते हैं, इसलिए इनके पारस्परिक

लेन-देन अथवा भुगतान शेष का निपटारा नकद राशि में करने की आवश्यकता नहीं होती है बल्कि ऋणी बैंक धन प्राप्त करने वाले बैंक को केन्द्रीय बैंक के नाम एक चैक देता है जिसे केन्द्रीय बैंक प्रापक (Receiver) बैंक के खाते में जमा (क्रेडिट) तथा ऋणी बैंक के खाते में डेबिट कर देता है।

उदाहरणार्थ, यदि भारतीय स्टेट बैंक के पास सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का 5000 रुपये का चैक तथा सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के पास भारतीय स्टेट बैंक का 6000 रुपये का चैक है, तो दोनों के दावे का निपटारा व समाशोधन का सबसे आसान तरीका यह है कि सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया भारतीय स्टेट बैंक को केन्द्रीय बैंक के नाम 1000 रुपये का चैक दे दे। इस स्थानांतरण के परिणामस्वरूप सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के खाते में 1000 रुपये कम कर दिए जाएंगे।

 समाशोधन गृह के कार्य करने से लाभ यह है कि इससे मुद्रा और श्रम की बचत होती है तथा बैंकों के पारस्परिक संबंध के बढ़ने से समान और सरल बैंकिंग प्रणाली निर्मित होती है।   

7. अंतिम ऋणदाता के रूप में कार्य-

      अंतिम ऋणदाता से तात्पर्य है कि जब सदस्य बैंकों को अन्य किसी स्रोत से ऋण नहीं मिलता है तो ऐसे समय केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों की सहायता करता है। शब्द “अंतिम ऋणदाता” का प्रयोग सर्वप्रथम बेजहाट ने 1873 ई. में किया था। इस संबंध में बेजहाट का कहना है कि “जो बैंक देश के अंतिम बैंकिंग कोष रखते हैं उन्हे चाहिए कि वे संकट या आवश्यकता के समय में सद्य ही स्वतंत्रतापूर्वक ऋण दें।”

      केन्द्रीय बैंक अन्य बैंकों को दो प्रकार से ऋण देता है- प्रथम व्यापारिक बिलों की पुनर्कटौती कर तथा द्वितीय प्रतिभूतियों की जमानत पर।

केन्द्रीय बैंक के इस कार्य से लाभ यह होता है की बैंक दिवालिया होने से बच जाते हैं तथा उनपर जनता का विश्वास बना रहता है साथ ही साथ बैंकों पर नियन्त्रण रखना सरल होता है।    

8. अन्य कार्य-

केन्द्रीय कार्य उपर्युक्त कार्यों के अलावा भी अन्य कार्य करता है। इसके कुछ अन्य महत्वपूर्ण कार्य निम्न हैं-

v आँकड़ों का संग्रहण और प्रकाशन

v विनियोग के लिए अर्थ-प्रबंध करना

v आर्थिक समस्याओं पर चिंतन और उसके निराकरण के उपाय देना

v अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करना

v आर्थिक विकास हेतु देश में एक सशक्त और संगठित बैंकिंग प्रणाली का गठन, कृषि और औद्योगिक वित्त का प्रबंध करना ।

                                                                                धन्यवाद 

                                                                पुरुषोत्तम कुमार पाठक                                                                                                                    

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