उत्पादन फलन

उत्पादन क्या है? 

 अर्थशास्त्र में किसी वस्तु के रूप, स्थान समय एवं आकार में परिवर्तन करने में एक नई उपयोगिता का निर्माण होता है जिसे उत्पादन कहा जाता है।  अर्थात यह कहा जा सकता है कि किसी वस्तु में नई उपयोगिता का  सृजन करना ही उत्पादन कहलाता है। 
जैसे एक लकड़ी के लॉग  से फर्नीचर का  निर्माण उत्पादन है। 
जब हम किसी वस्तु के रूप, स्थान, समय एवं आकर में परिवर्तन करना चाहते हैं तो हमें कुछ साधनों की आवश्यकता होती है। जैसे श्रम पूँजी भूमि तथा साहस। इन चारों साधनों को आगत कहा जाता है। अतः हम कह सकते हैं कि उपयोगिता के सृजन में आगतों  का निर्गत में रूपांतरण होता है, जिसे उत्पादन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि आगत का निर्गत में रूपांतरण ही उत्पादन है।  
उत्पादन में न केवल वस्तुओं को ही शामिल किया जाता है बल्कि पेशेवर लोगों की सेवाओं को भी उत्पादन के अंतर्गत शामिल किया जाता है। जैसे एक चिकित्सक के द्वारा चिकित्सा  करना  सेवा का उत्पादन है। 

उत्पादन फलन

आगत और निर्गत के बीच के फलनत्मक तथा तकनीकी संबंध को उत्पादन फलन कहा जाता है।
गणितीय रूप में एक उत्पादन फलन को निम्न रूप से दर्शाया जा सकता है।
Q=f(L,l,K,E,T.......)
जहां L= श्रम 
    l= भूमि , K = पूंजी, E= साहस, T= तकनीक, Q= निर्गत की मात्रा  
 एक उत्पादन फलन इस बात की व्याख्या करता है कि आगतों के एक निश्चित मात्रा के प्रयोग के फलस्वरूप निर्गत की उत्पादित अधिकतम मात्रा कितनी है। एक उत्पादन फलन में तकनीकी रूप से सक्षम उत्पादन विधि को शामिल किया जाता है। एक उत्पादन विधि तकनीकी रूप से सक्षम कहलाती है जिसमें कम से कम एक आगत की मात्रा अपेक्षाकृत कम हो।

अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन उत्पादन फलन

अल्पकालीन उत्पादन फलन 

जब अन्य साधनों को स्थिर रखते हुए एक साधन में परिवर्तन का उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन अल्पकालीन उत्पादन फलन कहलाता है। 
दो साधनों श्रम (L) तथा पूंजी(K)  के लिए उत्पादन फलन 
Q=(L,K) 
चूंकि अल्पकाल में पूंजी में परिवर्तन करना संभव नहीं होता अतः अल्पकाल में श्रम परिवर्तनशील साधन और पूंजी स्थिर साधन है । इस प्रकार अल्पकालीन उत्पादन फलन का स्वरूप होगा -
Q =(L)

कुल उत्पाद , औसत उत्पाद और सीमांत उत्पाद की संकल्पना

कुल उत्पाद - 

परिवर्तनशील साधन के एक निश्चित मात्रा को रोजगार में लगाने से किसी वस्तु के उत्पादन की कुल मात्रा को कुल उत्पाद कहा जाता है । उदाहरण के लिए  उदाहरण के लिए पूँजी की एक दी हुई मात्रा के साथ  5 इकाई श्रम को रोजगार पर लगाने से किसी वस्तु की 200 इकाई का उत्पादन होता है तो श्रम का कुल उत्पाद 200 इकाई होगा।

 परिवर्तनशील अनुपात के नियम के अनुसार जब परिवर्तनशील साधन की इकाई में वृद्धि की जाती है तो कुल उत्पाद प्रारंभ में बढ़ते दर से बढ़ता है, उसके बाद घटते दर से बढ़ता है तथा अधिकतम होने के बाद यह घटने लगता  है। कुल उत्पाद रेखा  को निम्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। 



औसत उत्पाद -

 परिवर्ती साधन के प्रति इकाई के प्रयोग से प्राप्त उत्पादन को औसत उत्पादन कहा जाता है। इसे साधन के कुल उत्पाद को परिवर्ती साधन की इकाई से भाग देकर प्राप्त किया जाता है। अतः

AP(L) = Q/L, जहाँ Q कुल उत्पाद, L श्रम की इकाई तथा AP(L) श्रम का  औसत उत्पाद।

उदाहरण के लिए पूँजी की एक स्थिर मात्रा के साथ 5 इकाई श्रम के प्रयोग से किसी वस्तु की 200 इकाई का उत्पादन होता है तो श्रम की औसत उत्पाद AP(L)= 200/5=40 होगा। 

जब पूँजी की स्थिर मात्रा के साथ श्रम की इकाई में परिवर्तन किया जाता है तो श्रम का औसत उत्पाद पहले बढ़ता है अधिकतम होने के बाद घटने लगता है। इस प्रकार औसत उत्पाद का आकार उल्टा ‘U’ आकार का होता है जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है।

सीमांत उत्पादन 

पूँजी की दी हुई मात्रा के साथ श्रम की मात्रा में एक अतिरिक्त इकाई से परिवर्तन करने पर कुल उत्पादन में जो परिवर्तन होता है उसे श्रम का सीमांत उत्पाद कहा जाता है।

संकेत में

       MP= TP(n) - TP(n-1) अथवा सीमांत उत्पाद = कुल उत्पाद में परिवर्तन / श्रम की मात्रा में परिवर्तन

उदाहरण के लिए उदाहरण के लिए पूँजी की एक स्थिर मात्रा के साथ 5 इकाई श्रम के प्रयोग से किसी वस्तु की 200 इकाई तथा 6 इकाई श्रम के प्रयोग से उस वस्तु की 250 इकाई का उत्पादन होता है तो श्रम का सीमांत उत्पादन ( 250-200=50) 50 इकाई होगा।

जब पूँजी की स्थिर मात्रा के साथ श्रम की इकाई में परिवर्तन किया जाता है तो श्रम का सीमांत उत्पाद पहले बढ़ता है अधिकतम होने के बाद घटने लगता है। इस प्रकार सीमांत उत्पाद वक्र का आकार उल्टा ‘U’ आकार का होता है जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है।

परिवर्तनशील अनुपात का नियम :-

अल्पकाल में परिवर्तनशील साधन में परिवर्तन किया जाता है तो स्थिर साधन और परिवर्तनशील साधन का अनुपात परिवर्तित होता है तथा परिवर्तनशील साधन का भौतिक उत्पाद में भी परिवर्तन होता है। स्थिर साधन और परिवर्ती साधन के अनुपात में परिवर्तन का उत्पाद पर पड़ने वाले प्रभाव का  अध्ययन परिवर्तनशील अनुपात का नियम कहलाता है।

प्रो. स्टिगलर के शब्दों में “जैसे जैसे एक साधन की बराबर मात्राएँ जोड़ी जाती हैं तथा दूसरे साधनों की मात्राएँ स्थिर रखी जाती हैं, एक स्थिति के बाद उत्पादन में होने वाली वृद्धि कम होने लगती है अर्थात सीमांत उत्पादन घटने लगती है ।”

परिवर्तनशील अनुयात का नियम कहता है कि स्थिर साधनों की मात्राओं को स्थिर रखते हुए जब परिवर्ती साधन की मात्रा में वृद्धि की जाती है तो पहले सीमांत और औसत उत्पादन दोनों बढ़ते हैं परिणामतः कुल उत्पादन में बढ़ते हुए दर से वृद्धि होती है, कुछ सीमा के पश्चात औसत उत्पादन तथा सीमांत उत्पादन घटने लगते हैं परिणामतः कुल उत्पादन में घटते दर  से वृद्धि होती है। एक सीमा के पश्चात सीमांत उत्पादन के ऋणात्मक होने कारण कुल उत्पादन में कमी होने लगती है।

परिवर्तनशील अनुपात का नियम उत्पादन के तीन स्तर की व्याख्या करता है।

उत्पादन का पहला स्तर

इस स्तर में सीमांत उत्पाद तथा औसत उत्पादन दोनों बढ़ता है परिणामतः कुल उत्पादन में तेजी से वृद्धि होती है। उत्पादन का यह स्तर औसत उत्पादन के अधिकतम होने पर खत्म होता है। एक विवेकशील उत्पादक इस स्तर पर उत्पादन नहीं करता क्योंकि इस स्तर पर स्थिर साधनों का कुशलतम प्रयोग नहीं हो रहा होता है, जिसके कारण उनका सीमांत उत्पादन ऋणात्मक राहत है।

उत्पादन का दूसरा स्तर- 

इस स्तर पर औसत उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद दोनों घटते हैं लेकिन सीमांत उत्पादन धनात्मक रहता है, जिस कारण कुल उत्पाद घटते दर से बढ़ता है। इस स्तर पर स्थिर साधन और परिवर्ती साधन के अनुपात का अनुकूलतम प्रयोग हो रहा होता है। अतः एक विवेकशील उत्पादक इसी स्तर पर उत्पादन कार्य जारी रखता है।

उत्पादन का तीसरा स्तर

इस स्तर पर सीमांत उत्पाद ऋणात्मक होने के कारण कुल उत्पाद घटता है।

परिवर्तनशील अनुपात के नियम की व्याख्या निम्न रेखाचित्र से की जा सकती है। 



परिवर्तनशील अनुपात का नियम की मान्यताएं

  •           कुछ साधन स्थिर और कुछ साधन परिवर्तनशील होते हैं।
  •             तकनीकी स्थिति स्थिर रहती है।
  •             उत्पादन के साधनों का अनुपात में परिवर्तन होता है। 

दीर्घकालीन उत्पादन फलन-

दीर्घकालीन उत्पादन उत्पादन के पैमाने में परिवर्तन का उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करता है। दो साधनों श्रम(L) और पूँजी(Q) के लिए दीर्घकालीन उत्पादन फलन को निम्न गणितीय रूप से दिखाया जा सकता है।

Q = f(L,K)

उत्पादन के पैमाने में वृद्धि करने से तात्पर्य है कि उत्पादन के सभी साधनों में एक ही अनुपात से वृद्धि करना। यहाँ ध्यान रखने वाली बात है कई दीर्घकालीन उत्पादन फलन में साधनों का अनुपात स्थिर रहता है।  दीर्घकालीन उत्पादन फलन को पैमाने का प्रतिफल भी कहा जाता है।

जब उत्पादन के सभी साधनों में एक ही अनुपात में परिवर्तन करने से उत्पादन का पैमाना बदल जाता है परिणामस्वरूप उत्पादन में भी परिवर्तन होता है जिसे पैमाने का प्रतिफल कहा जाता है। 

 पैमाने का प्रतिफल तीन प्रकार का होता है।

·        पैमाने का वृद्धिमान प्रतिफल- यदि साधनों में की वृद्धि के अनुपात से उत्पादन में अधिक अनुपात से वृद्धि हो तो पैमाने का वृद्धिमान प्रतिफल कहा जाता है।

उदाहरण के लिए साधनों में 50 % से  वृद्धि करने पर यदि उत्पादन में 50 % से अधिक वृद्धि हो तो पैमाने का वृद्धिमान प्रतिफल प्राप्त होता है।

·        पैमाने का समता प्रतिफल - इस स्थिति में उत्पादन के साधनों को जिस अनुपात से बढ़ाया जाता है ठीक उसी अनुपात से उत्पादन में भी वृद्धि होती है

 उदाहरण के लिए साधनों में 50 % से  वृद्धि करने पर यदि उत्पादन में 50 % से वृद्धि हो तो पैमाने का समता प्रतिफल प्राप्त होता है।

·        पैमाने का ह्रासमान प्रतिफल- पैमाने का ह्रासमान प्रतिफल प्राप्त होता है यदि उत्पादन के साधनों को जिस अनुपात से वृद्धि की जाती, उत्पादन में उस अनुपात से कम अनुपात से वृद्धि होती है।

उदाहरण के लिए साधनों में 50 % से  वृद्धि करने पर यदि उत्पादन में 50 % से कम वृद्धि हो तो पैमाने का ह्रासमान प्रतिफल कहलाता है।

पैमाने के प्रतिफल को निम्न तालिका से दर्शाया जा सकता है। 

उत्पादन का पैमाना

उत्पादन

पैमाने का प्रतिफल

श्रम

पूँजी

1

1

050



  वृद्धिमान प्रतिफल

2

2

150

4

4

450

8

8

900

    समता प्रतिफल

16

16

1800

32

32

2700

   ह्रासमान प्रतिफल 

64

64

4050

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