वस्तु की प्रकृति एवं उदासीनता वक्र का आकार
वस्तु के अन्तर्गत मूर्त या अमूर्त पदार्थ को शामिल किया जाता है जो मनुष्य की आवश्यकता को संतुष्ट करते हैं। अर्थात वस्तु का उपभोग उपभोक्ता की इच्छानुसार होता है। अगर किसी वस्तु के प्रति उपभोक्ता की इच्छा नहीं है तो वह उस वस्तु का क्रय नहीं करना चाहेगा। जैसे कपड़ा, भोजन, जूते, मोबाईल आदि वस्तु के उदाहरण हैं।
वस्तुएँ प्रतियोगी या पूरक हो सकती हैं। जब दो वस्तुओं का उपभोग एक साथ होता है तो उसे पूरक वस्तुएँ तथा एक वस्तु के स्थान पर दूसरी वस्तु के उपभोग की संभावना रहने पर दोनों वस्तुएं प्रतियोगी वस्तुएँ होती हैं। जैसे कार और टायर, कलम और स्याही आदि एक दूसरे के पूरक तथा कोकोकोला एवं पेप्सी एक दूसरे के प्रतियोगी हैं।
वस्तुओं को आवश्यकता, आरामदायक या विलासिता की वस्तु के रूप में विभाजित किया जाता है। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि आवश्यकता, आरामदायक और विलासिता वस्तु के रूप में वस्तु का विभाजन आय सापेक्ष है। ऐसा इसलिए कि एक वस्तु किसी उपभोक्ता के लिए आरामदायक तथा किसी दूसरे उपभोक्ता के लिए विलासिता की वस्तु हो सकती है।
वस्तुएँ निकृष्ट या सामान्य हो सकती हैं। या विभाजन उपभोक्ता के मानसिक स्थिति के अनुसार होता है। एक उपभोक्ता किसी वस्तु को निकृष्ट या सामान्य समझ सकता है। यदि किसी वस्तु को वह निकृष्ट समझता है तो अपनी आय बढ़ने पर उस वस्तु की कम मात्र का क्रय करता है तथा सामान्य वस्तु की स्थिति में वस्तु की माँग उपभोक्ता की आय से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होती है। निकृष्ट वस्तुओं में भी कुछ ऐसी वस्तुएँ होती हैं जिनकी कीमत में कमी होने से उपभोक्ता उस वस्तु की माँग कम कर देता है इस प्रकार की वस्तुएँ गिफिन वस्तुएँ कहलाती हैं।
वस्तुएँ विभाज्य तथा अविभाज्य हो सकती हैं। विभाज्य वस्तु को छोटी से छोटी इकाई में भी विभाजित की जा सकती है। लेकिन कुच्छ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिनका विभाजन संभव नहीं होता जैसे कार, इस प्रकार की वस्तु को अविभाज्य वस्तु कहा जाता है।
वस्तु
की स्थिति में उदासीनता वक्र-
अगर एक उपभोक्ता दो वस्तुओं का उपभोग करता है तो उसके अधिमान को एक रेखाचित्र से दर्शाया जाता है जिसे उदासीनता वक्र कहा जाता है। उदासीनता वक्र एक उपभोक्ता को समान संतुष्टि प्रदान करने वाले दो वस्तुओं के विभिन्न बंडलों का समुच्चय होता है। उदासीनता वक्र ऋणात्मक ढाल के साथ मूल बिन्दु की ओर उत्तल (उन्नतोदर) होता है। उदासीनता वक्र की यह आकृति उपभोक्ता के एकदिष्ट अधिमान और प्रतिस्थापन की घटती सीमांत दर नियम के अनुसार होती है। जैसा की चित्र में दर्शाया गया है।
यदि वस्तुएँ पूर्णप्रतिस्थापक होती हैं तो उदासीनता वक्र ऋणात्मक ढाल की एकसरल रेखा होती है जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है।
यदि वस्तुएँ एक दूसरे की पूरक हों तो उदासीनता वक्र का आकार L आकार का होता है जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है।
तटस्थ वस्तुएँ-
उस वस्तु को उदासीन (तटस्थ) वस्तु कहा जाता है जिसका उपभोग उपभोक्ता के आय स्तर पर निर्भर नहीं करता है। जैसे चिकित्सक के द्वारा निर्धारित दवा, माचिस आदि
जब उपभोक्ता एक सामान्य वस्तु तथा एक तटस्थ वस्तु का उपभोग करता है तो उदासीनता वक्र अक्षों के समांतर हो जाता है। जब वस्तु-X तटस्थतो उदासीनता वक्र X-अक्ष के समांतरतथा वस्तु-Y तटस्थ होने की स्थिति में उदासीनता वक्र Y-अक्ष के समांतर होता है। जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है।–
कभी उपभोक्ता को ऐसी स्थिति से सामना करना पड़ता है जब वह नहीं चाहते हुए भी उसे किसी भौतिक या अभौतिक पदार्थ का उपभोग करना पड़ता है। इस प्रकार के पदार्थ अवस्तु कहलाते है। अवस्तु उपभोक्ता की संतुष्टि स्तर को कम करती है। एक उपभोक्ता के लिए अवस्तु का मूल्य ऋणात्मक होता है। जैसे प्रदूषण, कूड़ा, बीमारी आदि
लेकिन ऐसा भी हो सकता कि कोई पदार्थ किसी एक उपभोक्ता के लिए वस्तु हो तथा दूसरे उपभोक्ता के लिए अवस्तु। जैसे अगर मूंगफली से किसी उपभोक्ता को एलर्जी है तो उस उपभोक्ता के लिए मूंगफली अवस्तु तथा मूंगफली को पसंद करने वाले उपभोक्ता के लिए यह वस्तु हो जाती है।
उपभोक्ता के पास उपलब्ध बंडलों में यदि एक अवस्तु हो तो उदासीनता वक्र का आकार धनात्मक ढाल वाला हो जाता है।
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