मुद्रा पूर्ति निर्धारण का सिद्धांत

 

मुद्रा पूर्ति के निर्धारण का सिद्धांत

मुद्रा पूर्ति के निर्धारण के संबंध में दो सिद्धांत हैं।-

  पहले सिद्धांत के अनुसा अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति का निर्धारण केन्द्रीय बैंक के द्वारा बहिर्जात रूप से होता है। प्रायः प्रत्येक देश का केन्द्रीय बैंक उस देश की मुद्रा का निर्गमन करता है। भारत में मुद्रा निर्गमन का कार्य भारतीय रिजर्व बैंक को आवंटित है। आरबीआई एक रुपया के नोट को छोड़कर सभी मूल्य के नोटों का निर्गमन करता है। एक रुपया के नोट तथा 1, 2 और 5 रुपये मूल्य के सिक्के वित्त विभाग के द्वारा जारी किए जाते हैं तथा इनका वितरण आरबीआई के द्वारा होता है।

आरबीआई ने मुद्रा निर्गमन के लिए न्यूनतम आवश्यक रिजर्व सिद्धांत का पालन करता है। यह  इसके लिए न्यूनतम 115 करोड़ रुपये का सोना तथा 85 करोड़ रुपये का विदेशी विनिमय रिजर्व आवश्यक रूप से रखता है 

 दूसरे सिद्धांत के अनुसार मुद्रा की पूर्ति का निर्धारण आर्थिक क्रियाओं में परिवर्तन के द्वारा अन्तर्जात रूप से होता है। इस सिद्धांत के अनुसार मुद्रा की पूर्ति का निर्धारण बैंकिंग प्रणाली की क्रियाविधि के द्वारा होता है। बैंकिंग प्रणाली मुद्रा आधार/ उच्च शक्तिशाली मुद्रा से कई गुना अधिक मुद्रा की पूर्ति करती है। इस सिद्धांत को मुद्रा गुणक का सिद्धांत या H  सिद्धांत भी कहा जाता है।

 यदि अर्थव्यवस्था में मुद्रा आधार H तथा मुद्रा गुणक m हो तो मुद्रा की पूर्ति M = mH होगी।

अब प्रश्न उठता है कि  मुद्रा आधार (Money Base) क्या है?

मुद्रा आधार-  नकदी तथा बैंकिंग प्रणाली में कुल रिजर्व को मुद्रा आधार या उच्च शक्तिशाली मुद्रा कहा जाता है।

समीकरण के रूप में

H = C + R---------------------------------1

जहाँ H = उच्च शक्तिशाली मुद्रा , C= जनता के पास नकदी तथा R= बैंकिंग प्रणाली का कुल रिजर्व।

भारत के बैंकिंग प्रणाली में सभी व्यावसायिक बैंकों को उनकी कुल जमा (माँग जमा + समय जमा) का न्यूनतम भाग केन्द्रीय बैंक के पास नकदी तथा अपने पास नकदी या सोना या सरकारी प्रतिभूति में रखना होता है। व्यावसायिक बैंक अपनी कुल जमा का जो अनुपात आरबीआई के पास रखते हैं उसे नकद रिजर्व अनुपात (CRR) कहा जाता है तथा जो अनुपात खुद के पास नकदी या सरकारी प्रतिभूति के रूप में रखते हैं उसे वैधानिक तरलता अनुपात (SLR ) कहा जाता है। CRR तथा SLR का निर्धारण आरबीआई के  द्वारा समय समय पर अर्थव्यवस्था की आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। यदि व्यावसायिक बैंकों के द्वारा आरबीआई के पास रखे रिजर्व को R1 तथा खुद के पास रखे रिजर्व को R2 है तो 

 कुल रिजर्व R = R1 + R2

यदि कुल जमा D है तो R1= CRR*D तथा R2= SLR*D

R = (CRR+SLR) D------------------------------2

अतः  मुद्रा आधार या उच्च शक्तिशाली मुद्रा

H = C + (CRR+SLR) D

या H = D(C/D + CRR+SLR)

या H= D(CDR +CRR +SLR

जहाँ CDR = करंसी जमा अनुपात (कुल जमा का वह अनुपात जिसे जनता करेंसी को अपने पास रखना चाहती है।)

चूंकि मुद्रा की पूर्ति में जनता के पास करेंसी तथा बैंकिंग प्रणाली में कुल जमा को शामिल किया जाता है। अर्थात संकेत में

M = C + D = D(C/D +1)

या M = D(CDR +1)--------------------------3

अब ,

 मुद्रा गुणक m = M/H

Or, m= D(CDR+1)/D(CDR+CRR+SLR)

Or, m= (CDR+1)/(CDR+CRR+SLR) --------------------4

समीकरण 4 से स्पष्ट है कि मुद्रा गुणक करेंसी जमा अनुपात, नकदी आरक्षित अनुपात तथा वैधानिक तरलता अनुपात से अप्रत्यक्ष रूप से संबंधित है। यदि इन अनुपातों में वृद्धि होती है तो मुद्रा गुणक का मान कम होगा तथा एक दिए हुए मुद्रा आधार से अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति कम होगी तथा इन आरक्षित अनुपातों में कमी मुद्रा गुणक में वृद्धि करेगी तथा परिणामतः अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति वृद्धि होगी।

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