मांग का नियम

मांग का नियम    

मांग का नियम किसी वस्तु की मांग तथा वस्तु की कीमत के बीच संबंध की व्याख्या करता है। यह नियम कहता है कि अन्य बातें समान रहने पर किसी वस्तु की प्रति इकाई समय पर मांग तथा उसकी कीमत के बीच मे व्युत्क्रम संबंध पाया जाता है। अर्थात किसी वस्तु की कीमत में कमी होने से वस्तु की प्रति इकाई समय पर  मांग मात्रा में वृद्धि तथा उसकी कीमत में वृद्धि होने उसकी मांग मात्रा में कमी होती है। यहां 'प्रति इकाई समय 'महत्वपूर्ण है। यदि हम कहते है कि समोसे की कीमत 5 रु.प्रति इकाई रहने पर हम 5 समोसा खरीदने की इच्छा रखते हैं, प्रश्न उठता है कि किस समय में वह इच्छा है अर्थात एक घंटा या एक सप्ताह या एक वर्ष में समोसे की उक्त संख्या खरीदी जाएगी। अतः समय तत्व के बिना मांग की संकल्पना अधूरी है। 
                         मांग के नियम को मांग वक्र से व्याख्या किया जा सकता है ।  मांग वक्र यह सूचित करता है कि एक दिए हुए समय तथा किसी निश्चित कीमत पर वस्तु की अधिकतम कितनी मात्रा खरीदी जाएगी। अर्थात मांग वक्र किसी वस्तु की मांग की अधिकतम सीमा होती है। पुनः मांग वक्र स्पष्ट करता है कि वस्तु की एक निश्चित मात्रा के लिए अधिकतम प्रति इकाई कीमत कितनी होगी।  मांग वक्र की ढाल ऋणात्मक होती है अर्थात मांग वक्र ऊपर से नीचे की ओर गिरती होती है । इसका तात्पर्य है कि किसी निश्चित समय पर अगर वस्तु की कीमत में गिरावट होने से  उस वस्तु की मांग मात्रा में वृद्धि होती है तथा कीमत में वृद्धि होने से वस्तु की मांग मात्रा कम हो जाती है।
मांग के नियम को निम्न रेखाचित्र से स्पष्ट किया जा सकता है।
चित्र 1
चित्र 1 में x अक्ष पर प्रति इकाई समय पर मात्र को दिखाया गया है तथा Y अक्ष पर वस्तु की कीमत को। AB मांग की रेखा है। जब वस्तु की कीमत OP0 होती है  तो वस्तु की माँग मात्रा OQ  होती है। ठीक इसी प्रकार  जब वस्तु की कीमत बढ़कर OPहो जाती है तो माँग मात्रा  घटकर OQ होती है। अतः स्पष्ट है कि अन्य  बातें समान रहने पर वस्तु की माँग  मात्रा  तथा वस्तु की कीमत में विपरीत सम्बन्ध होता है। 
                यहाँ 'अन्य बातें समान रहने पर' वाक्यांश का अर्थ है कि उपभोक्ता की आय, संबंधित वस्तु की कीमत तथा उपभोक्ता की आदत आदि स्थिर रहते हैं। 
यदि वस्तु की कीमत में परिवर्तन न हो लेकिन उपभोक्ता की आय में वृद्धि हो तो उपभोक्ता उस वस्तु की अधिक मात्रा को खरीदना चाहेगा। दूसरे शब्दों में आय में वृद्धि माँग में वृद्धि लाती है तथा आय में कमी से वस्तु की माँग कम हो जाती है। 
अतः वस्तु की माँग तथा उपभोक्ता की आय में प्रत्यक्ष संबंध होता है। लेकिन यदि वस्तु को उपभोक्ता घटिया समझता है तो अपनी आय बढ़ने पर वस्तु की अधिक मात्रा नही खरीदना चाहेगा बल्कि वस्तु की कम मात्रा खरीदना चाहेगा। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि घटिया वस्तु की आय माँग ऋणात्मक होती है। अर्थात उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने से घटिया वस्तु की मांग कम हो जाती है तथा विलोमशः।
ठीक इसी तरह यदि वस्तु की कीमत में परिवर्तन न हो लेकिन पूरक वस्तु या प्रतियोगी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने से वस्तु की माँग में परिवर्तन होता है
  यदि किसी वस्तु की पूरक वस्तु की कीमत कम होती है तो वस्तु की मांग बढ़ जाती है तथा इसके विपरीत पूरक वस्तु की कीमत बढ़ने से वस्तु की मांग कम हो जाती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि पूरक वस्तु की स्थिति में वस्तु की आड़ी मांग ऋणात्मक होती है। 
 उदाहरण के लिए स्याही की कीमत कम होने से कलम की माँग अधिक तथा स्याही की कीमत में वृद्धि होने से कलम की मांग कम होती है।
  प्रतियोगी वस्तु की स्थिति में वस्तु की आड़ी माँग धनात्मक होती है। अर्थात किसी वस्तु की प्रतियोगी वस्तु की कीमत में कमी आने से वस्तु की माँग कम तथा प्रगियोगी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से वस्तु की मांग अधिक हो जाती है।

माँग का नियम की  मान्यताएँ 

  • उपभोक्ताओं की  रुचियों  व अधिमानों में  कोई परिवर्तन नहीं  होता  है। 
  •   उपभोक्ता की आय स्थिर रहती है ।
  • अन्य वस्तुओं की कीमते स्थिर हो ।
  • वस्तु का न तो कोई प्रतियोगी वस्तु हो और न ही स्थानापन्न ।
  • भविष्य में वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन की आशंका न हो ।
  • प्रयोग में लायी जाने वाली वस्तु साधारण हो ।

माँग नियम के अपवाद -

कुछ अवस्थाओं में माँग  वक्र की ढाल  ऋणात्मक न होकर धनात्मक होती है , इन्ही अवस्थाओं को माँग -नियम का अपवाद कहा जाता है । दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है की कुछ विशेष परिस्थितिओं में उपभोक्ता किसी वस्तु की कीमत कम होने पर भी उस वस्तु की काम मात्रा खरीदना चाहता है  तथा वस्तु की कीमत घटने पर वह उस वस्तु की अधिक मात्रा ।  जब किसी वस्तु को उपभोक्ता यदि घटिया समझता है तो उस वस्तु की कीमत कम होने पर उस वस्तु की स्थानापन्न वस्तु जिसे वह अच्छा समझता है , को खरीद लेगा परिणामतः उस घटिया वस्तु की मांग काम हो जाएगी । इस प्रकार की वस्तुओं को गिफ़्फ़ीन वस्तु कहा जाता है 
                     युद्ध या प्राकृतिक आपदा की स्थिति में वस्तु की पूर्ति में कमी होने की आशंका रहती है , ऐसी स्थिति में उपभोक्ता वस्तु की कीमत बढ़ने के बावजूद उस वस्तु की अधिक मात्रा में खरीद कर भविष्य में उस वस्तु की कमी  प्रति खुद को सुरक्षित रखने की  प्रवृत्ति रखता है । ऐसी परिस्थिति में माँग का नियम लागु नहीं होता है 
                जब देश में मंदी का प्रभाव हो जाये तो वस्तु की कीमत में कमी होने के बावजूद उपभोक्ता उस वस्तु की काम मात्रा खरीदने की इच्छा रखता  है, कारण की मंदी  की स्थिति में उपभोक्ता की  क्रयक्षमता में कमी आ जाती है 
                    जिस वस्तु को उपभोक्ता प्रतिष्ठा की वस्तु समझता है जैसे सोना , हीरा आदि , वस्तु की कीमत बढ़ने से उस वस्तु की अधिक मात्रा में खरीदना चाहता है । कारण  कि इस प्रकार की वस्तुएं महँगी होने के कारन सर्वसाधारण के लिए उपलब्ध नहीं  पाती हैं ।  इसे ही प्रदर्शन प्रभाव कहा जाता है   कभी कभी अज्ञानता के प्रभाव में आकर मांग नियम के विपरीत व्यवहार करता है । जैसे "मँहगा अच्छा , सस्ता घटिया "के  भाव  को रखना ,  चमकदार और आकर्षक पैकिंग वाली वस्तु की गुणवत्ता को अधिक समझना आदि अज्ञानता प्रभाव के उदहारण हैं  

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