माँग का सिद्धांत

 

माँग

साधारण बोलचाल की भाषा में केवल इच्छा को ही माँग कह दिया जाता है, लेकिन अर्थशास्त्र में शब्द माँग का तात्पर्य प्रभावपूर्ण इच्छा से है। प्रभावपूर्ण इच्छा उस इच्छा को कहा जाता है जिसकी संतुष्टि हो सके। किसी वस्तु के प्रति इच्छा को संतुष्ट तभी किया जा सकता है, जब समय एवं स्थान विशेष पर वस्तु की उपलब्धता की स्थिति में उपभोक्ता उस वस्तु को खरीदने में सक्षम तथा तत्पर हो। दूसरे शब्दों में आवश्यक क्रयक्षमता से समर्थित इच्छा ही प्रभावपूर्ण इच्छा है। अतः किसी वस्तु की माँग के लिए आवश्यक तत्व निम्न हैं-

 उपभोक्ता की इच्छा

वस्तु के क्रय करने की तत्परता

वस्तु की उपलब्धता

किसी दिए गए समय में वस्तु की कीमत

उपभोक्ता की क्रय क्षमता

इस प्रकार किसी विशेष समय में किसी निश्चित मूल्य पर इच्छित वस्तु को प्राप्त करने की प्रभावपूर्ण इच्छा माँग कहलाती है। दूसरे शब्दों मे यह कहा जा सकता है कि एक निश्चित समय पर किसी वस्तु की दी हुई कीमत पर वस्तु की जितनी मात्रा को एक उपभोक्ता खरीदने को तैयार  होता है उसे उस वस्तु की माँग कहा जाता है। यह स्थिर मात्रा नहीं होती बल्कि कीमत में परिवर्तन के साथ बदल जाती है। 

माँग को प्रभावित करने वाले कारक -

किसी वस्तु की माँग को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैंः-

वस्तु की कीमत - 

            किसी वस्तु की कीमत कम होने से उपभोक्ता उस वस्तु की अधिक मात्रा खरीदने को तत्पर रहता है तथा वस्तु की कीमत अधिक होने की स्थिति में वह वस्तु की कम मात्रा को खरीदना चाहता है। 

उपभोक्ता की आय- 

            सामान्य वस्तु की स्थिति में उपभोक्ता की आय में वृद्धि वस्तु की माँग को बढ़ाती है तथा आय मे कमी वस्तु की माँग को कम करती है।

        लेकिन जब एक उपभोक्ता किसी वस्तु को घटिया समझता है जैसे मोटे अनाज, ऐसी स्थिति में वह अपनी आय बढ़ने से उसकी माँग को कम कर देता है तथा विलोमशः  

 संबंधित वस्तु की कीमत -

·      पूरक वस्तु की स्थिति में-

जब दो वस्तुएं एक दूसरे के पूरक हों कहने का मतलब है कि दोनों की माँग संयुक्त हो तो ऐसी स्थिति में एक वस्तु की माँग उसके पूरक वस्तु की कीमत में कमी होने से बढ़ती है तथा पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से कम होती है।

उदाहरण के लिए स्याही की कीमत कम होने से कलम की माँग में वृद्धि तथा स्याही की कीमत में वृद्धि होने से कलम की माँग में कमी होगी।

·      प्रतियोगी वस्तु की स्थिति में

दो वस्तुएं एक दूसरे की प्रतियोगी या प्रतिस्थापक होती हैं जब एक उपभोक्ता उन वस्तुओं का उपयोग एक दूसरे के स्थान पर कर सकता है। जैसे कोकोकोला तथा पेप्सी एक दूसरे के प्रतियोगी वस्तु है। प्रतियोगी वस्तु की स्थिति में एक वस्तु की कीमत में कमी अपने प्रतियोगी वस्तु की माँग में कमी तथा वस्तु की कीमत में वृद्धि अपने प्रतियोगी वस्तु की माँग में वृद्धि करती है।

जैसे कोकाकोला की कीमत में कमी होने से पेप्सी की माँग कम हो जाएगी तथा कोकाकोला की कीमत मे वृद्धि से पेप्सी की माँग में वृद्धि होगी।

उपभोक्ता की रुचि - 

        किसी वस्तु के प्रति एक उपभोक्ता की रुचि बढ़ने से उस वस्तु की माँग में वृद्धि तथा उपभोक्ता की रुचि घटने से वस्तु की माँग में कमी होती है।

जनसंख्या - 

        किसी क्षेत्र विशेष की जनसंख्या में वृद्धि उस क्षेत्र विशेष में किसी वस्तु की माँग में वृद्धि तथा जनसंख्या में कमी वस्तु की माँग में कमी लाएगी।

आय का वितरण - 

    यदि देश में आय का वितरण समान है तो वस्तु की माँग में वृद्धि अन्यथा कमी होगी।

सरकार की नीति - 

        किसी वस्तु की माँग पर सरकार की नीतियों का भी प्रभाव होता है। किसी वस्तु की राशनिंग करने से उस वस्तु की माँग को नहीं बढ़ाया जा सकता। यदि सरकार लोगों को नकदी या वस्तु के रूप में सहायता ( हस्तांतरण भुगतान) करती है तो माँग में वृद्धि होती है। 

        जैसे भारत में उज्ज्वला योजना के लागू होने से गैस की माँग में वृद्धि हुई है।

भविष्य में कीमत में वृद्धि की आशंका - 

        यदि लोगों को यह आशंका होती है कि  किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने वाली है तो वे उस वस्तु की अधिक मात्रा को खरीदकर स्टॉक करने की होड़ में लग जाते हैं , जिस कारण वस्तु की माँग मे वृद्धि होती है।

माँग का नियम
(Law of Demand)

माँग का नियम अन्य बातें समान रहने पर वस्तु की माँग मात्रा तथा उसकी कीमत के बीच संबंध की व्याख्या करता है। इस नियम के अनुसार यदि किसी वस्तु की कीमत में कमी ( वृद्धि) होती है तो अन्य बातें समान रहने पर उस वस्तु की माँग मात्र में वृद्धि (कमी) होती है।

यहाँ वाक्यांश ‘अन्य बातें समान रहने पर’ का तात्पर्य है कि वस्तु की कीमत को छोड़कर माँग को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों मे कोई परिवर्तन नहीं होता। अगर इन कारकों में से किसी भी एक कारक में परिवर्तन होगा तो माँग का नियम लागू नहीं होगा।

    माँग के नियम की व्याख्या माँग तालिका और माँग वक्र से की जा सकती है।

माँग तालिका ( Demand Schedule)-

किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर उपभोक्ता के द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तु की मात्राओं जब सारणीबद्ध किया जाता है तो इस प्रकार प्राप्त सारणी माँग तालिका कहलाती है। एक माँग तालिका को निम्नवत दिखाया जा सकता है।

केले की कीमत ( रु. प्रति दर्जन )

केले की माँग मात्र ( दर्जन में)

40

10

50

8

60

6

70

4

80

2

इस तालिका से स्पष्ट है केले की कीमत में वृद्धि होने से केले की माँग मात्र में कमी होती है।

माँग वक्र (Demand Curve)

माँग तालिका का रेखाचित्रीय प्रदर्शन माँग वक्र कहलाता है। माँग वक्र स्पष्ट करता है कि किसी वस्तु की एक निश्चित कीमत पर उस वस्तु की माँग मात्रा क्या होगी। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि  एक माँग वक्र वस्तु की माँग मात्रा तथा उसकी कीमत के बीच संबंध की व्याख्या करता है।

संकेत में एक माँग वक्र को गणितीय रूप Q= f(P) में व्यक्त किया जा सकता है।

माँग वक्र को एक सरल रेखा या एक वक्रिय रेखा से दर्शाया जा सका है।

सरल रेखा माँग वक्र का सामान्य समीकरण Q = a-bP होता है।


एक वक्रीय रेखा माँग वक्र के सामान्य समीकरण को इस प्रकार लिखा जाता है।

रेखाचित्र में एक माँग वक्र को दर्शाने के लिए X-अक्ष पर वस्तु की माँग मात्रा और Y-अक्ष पर वस्तु की कीमत को दर्शाया जाता है। एक माँग वक्र को निम्नवत दर्शाया जा सकता है। 


माँग के नियम के अपवाद -

·      गिफिन वस्तु की स्थिति में

·      भविष्य में वस्तु की कीमत में वृद्धि की आशंका होने पर

·      अज्ञानता के कारण जब एक उपभोक्ता वस्तु की गुणवत्ता का मापदंड उसकी कीमत को समझ लेता है तो ऐसी स्थिति में माँग का नियम लागू नहीं होता है।

·      सामाजिक प्रतिष्ठा की वस्तु की स्थिति में

माँग के नियम के लागू होने के कारण -

·      सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम के कारण।  

·      प्रतिस्थापन प्रभाव के कारण।  

·      आय प्रभाव के कारण। 

·      वस्तुओं के विभिन्न प्रयोग।

सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम के अनुसार जब व्यक्ति किसी वस्तु की अधिक मात्रा का उपभोग करता है तो वस्तु की सीमांत उपयोगिता गिरती है। अतः एक उपभोक्ता किसी वस्तु की अधिक मात्रा को स्वीकार करेगा जब उस वस्तु की कीमत कम हो ताकि वह उस वस्तु से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता को वस्तु की कीमत से संतुलित कर सके।

  जब किसी वस्तु की कीमत मे कमी आती है तो वह अपेक्षाकृत सस्ती हो जाती है। उपभोक्ता महंगी वस्तु के स्थान पर सस्ती वस्तु का प्रतिस्थापन करता है। इसे प्रतिस्थापन प्रभाव कहा जाता है ।

    किसी वस्तु की कीमत में कमी होने से उपभोक्ता की वास्तविक आय बढ़ जाती है तथा वस्तु की कीमत में वृद्धि होने उसकी वास्तविक आय में कमी होती है। वास्तविक आय में परिवर्तन के कारण उपभोक्ता वस्तु की माँग मात्रा मे परिवर्तन करता है इसे आय प्रभाव कहा जाता है।

    सामान्यतः किसी वस्तु का अनेक प्रयोग संभव होता है। जब वस्तु की कीमत में कमी होती है तो उपभोक्ता उस वस्तु को कम महत्व वाले प्रयोग में उपयोग करने लगता है जिससे उसकी माँग मात्रा बढ़ जाती है।

बाजार माँग (Market Demand)

किसी वस्तु की बाजार माँग  बाजार में उस वस्तु के सभी उपभोक्ताओं के व्यक्तिगत माँग का कुल योग होती है। बाजार माँग की धारणा समष्टिगत धारणा है।

 किसी वस्तु की बाजार माँग की तालिका को व्यक्तिगत माँग तालिका को क्षैतिज जोड़ने से प्राप्त किया जाता है।

 उदाहरण के लिए मान लिया जाए की एक बाजार में किसी वस्तु के चार उपभोक्ता A,B,C तथा D हैं। वस्तु की व्यक्तिगत माँग तालिका इस प्रकार दी गई है। इस तालिका में बाजार माँग की गणना को भी दर्शाया गया है।

वस्तु की कीमत

A के द्वारा मांगी गई मात्रा

B के द्वारा मांगी गई मात्रा

 C के द्वारा मांगी गई मात्रा

वस्तु की बाजार माँग

1

15

10

8

15+10+8=33

2

12

8

7

12+8+7= 27

3

9

6

6

9+6+6=21

4

6

4

5

6+4+5=15

5

3

2

4

3+2+4=09


रेखाचित्र से बाजार माँग की रचना व्यक्तिगत माँग वक्रों के क्षैतिज योग के द्वारा होता है। जैसा कि  चित्र में दर्शाया गया है।

माँग की लोच ( Elasticity of Demand)

सामान्यतः माँग की लोच का संबंध माँग की कीमत लोच से लगाया जाता है, लेकिन माँग की लोच अवधारणा का संबंध माँग की आय एवं आड़ी लोच से भी है। माँग की लोच का तात्पर्य किसी वस्तु की माँग को प्रभावित करने वाले कारकों के सापेक्ष उसकी माँग में होने वाले परिवर्तनों की दर से है। दूसरे शब्दों में किसी वस्तु की कीमत, उपभोक्ता की आय अथवा उससे संबंधित वस्तु की कीमत आदि में परिवर्तन से उस वस्तु की मांग की प्रतिक्रियाशीलता की कोटि को माँग की लोच कहा जाता है।

(1) माँग की कीमत लोच

अन्य बातें समान रहने पर किसी वस्तु की कीमत में एक निश्चित परिवर्तन करने के फलस्वरूप वस्तु की माँग मात्रा में होने वाले परिवर्तन की दर को माँग की लोच कहा जाता है। इसे किसी वस्तु की माँग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन तथा वस्तु की कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन के अनुपात के रुप में परिभाषित किया जाता है।

सूत्र सेः-

Ed= मांग में प्रतिशत परिवर्तन/कीमत में प्रतिशत परिवर्तन

अथवा

माँग की कीमत लोच के प्रकार

कीमत लोच के आधार पर माँग के पाँच प्रकार है-

1) पूर्णतया बेलोचदार मांग या मांग की शून्य लोच

जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन का उसकी मांग में कोई प्रभाव नहीं पड़ता है तो उसकी मांग पूर्णतया बेलोचदार कही जाती है। ऐसी वस्तु की मांग की कीमत लोच का मान 0 होता है।

उदाहरण- नमक, माचिस आदि

तालिका से स्पष्टीकरण

वस्तु की कीमत

वस्तु की माँग मात्रा

10

25

15

25




उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि कीमत में वृद्धि का मांग में कोई प्रभाव नहीं है। यहाँ


ग्राफ से स्पष्टीकरण

इस रेखाचित्र में QQ’ माँग वक्र है ।  कीमत P तथा P’ पर माँग मात्रा समान रहती है।  अतः Ed=0

2) सापेक्षिक बेलोचदार माँग -

जब किसी वस्तु की कीमत में होने वाले परिवर्तन की तुलना में उसकी माँग मात्रा में परिवर्तन की दर कम होती है, तो उस वस्तु की माँग सापेक्षिक बेलोचदार कही जाती है। उदाहरण के लिए यदि किसी वस्तु की कीमत में 6% की कमी करने से उसकी माँग मात्रा में 4 % की वृद्धि होती है तो उसकी माँग की लोच 1 से कम होगी तथा उसकी माँग सापेक्षिक बेलोचदार कही जाती है।

   उदाहरण के लिए आवश्यक वस्तु जैसे कपड़ा, दूध, सब्जी आदि की मांग सापेक्षिक बेलोचदार होती है।

तालिका से स्पष्टीकरण

वस्तु की कीमत

वस्तु की माँग मात्रा

10

15

25

15

               उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि

रेखाचित्र से स्पष्टीकरण                                                                                          

3) सापेक्षिक लोचदार मांग-

          किसी वस्तु की मांग सापेक्षिक लोचदार होती है, जब वस्तु की कीमत में होने वाले परिवर्तन की तुलना में मांग में परिवर्तन की दर अधिक होती है। जैसे यदि वस्तु की कीमत में 5 प्रतिशत की वृद्धि करने से उसकी मांग में 8 प्रतिशत की कमी हो तो उसकी मांग सापेक्षिक लोचदार कही जाती है। इस स्थिति में मांग की कीमत लोच का मान इकाई से अधिक होती है।

उदाहरण के लिए विलासिता की वस्तु जैसे फ्रीज, कुलर, सोफा, कार आदि की मांग सापेक्षिक लोचदार होती है।

तालिका से स्पष्टीकरण

वस्तु की कीमत

वस्तु की मात्रा

10

5

25

40


रेखाचित्र से स्पष्टीकरण

4) इकाई लोचदार मांग-

     किसी वस्तु की मांग की लोच इकाई के बराबर होती है यदि उस वस्तु की कीमत में परिवर्तन के अनुपात में उसकी मांग में परिवर्तन होता है। जैसे यदि किसी वस्तु की कीमत में 10 प्रतिशत की वृद्धि करने से उसकी मांग में भी 10 प्रतिशत की कमी होती है तो उसकी मांग की लोच इकाई के बराबर होगी।

 तालिका से स्पष्टीकरण

वस्तु की कीमत

माँग मात्रा

10

15

20

10

                           

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि 



5) पूर्णतया लोचदार माँग या माँग की अनंत लोच

     जब किसी वस्तु की कीमत में बिना परिवर्तन या अति सुक्ष्म परिवर्तन होने से उसकी माँग मात्रा में बहुत ज्यादा परिवर्तन हो जाए तो उस वस्तु की माँग पूर्णतया लोचदार कही जाती है। ऐसी स्थिति में मांग की लोच का मान अनंत होता है।

दैनिक जीवन में इस प्रकार की वस्तु का उदाहरण नहीं मिलता है।

 तालिका से स्पष्टीकरण 

वस्तु की कीमत

वस्तु की मात्रा  

10

10

20

40

  उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि 



माँग की लोच को मापने की विधियाँ

माँग की लोच को मापने की चार विधियाँ हैं-

1) प्रतिशत/आनुपातिक/गणितीय विधि-

इस विधि के अनुसार माँग की लोच ज्ञात करने के लिए निम्न सूत्र का प्रयोग होता है।

माँग की कीमत लोच = (माँग मात्रा में प्रतिशत/आनुपातिक परिवर्तन) / (वस्तु की कीमत में प्रतिशत/आनुपातिक परिवर्तन) 


2) बिन्दु या ज्यामितीय विधि-

इस विधि का प्रतिपादन ए. मार्शल ने किया था। इस विधि के द्वारा एक सरल रेखा माँग वक्र के किसी बिंदु पर माँग की कीमत लोच ज्ञात की जा सकती है। इसके लिए निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है।

मांग की कीमत लोच =  माँग वक्र का नीचला भाग / माँग वक्र के  ऊपर का भाग

उदाहरण के लिए निम्न रेखाचित्र में माँग वक्र  AB के बिन्दु  E पर माँग की कीमत लोच ज्ञात करने का सूत्र Ed= EB/EA

एक सरल रेखा माँग वक्र के विभिन्न बिन्दु पर माँग की कीमत लोच 

ऊपर के रेखाचित्र में AB एक माँग वक्र है।  इस माँग वक्र का  बिन्दु E मध्य बिन्दु है।

बिन्दु  E पर माँग की कीमत लोच = 1                            

बिन्दु  A पर माँग की कीमत लोच = ∞ 

बिन्दु B पर माँग की कीमत लोच = 0                                       बिन्दु  E एवं  A के बीच माँग की कीमत लोच >1   

बिन्दु  E एवं  B के बीच किसी बिन्दु पर  माँग की कीमत लोच <1 

3) कुल व्यय विधि-

मार्शल द्वारा प्रतिपादित इस विधि के द्वारा वस्तु की कीमत में परिवर्तन के पूर्व एवं बाद में उपभोक्ता के कुल खर्च की तुलना कर यह ज्ञात किया जा सकता है कि वस्तु की मांग की कीमत लोच एक 1 के बराबर है या 1 से कम है या 1 से अधिक है।

(क) इकाई के बराबर लोच- जब वस्तु की कीमत में परिवर्तन का उपभोक्ता के व्यय पर कोई प्रभाव नहीं होता है तो माँग की कीमत लोच इकाई के बराबर होती है।

(ख) इकाई से अधिक लोच - जब वस्तु की कीमत में परिवर्तन एवं उपभोक्ता के व्यय में परिवर्तन विपरीत दिशा में होता है अर्थात् कीमत में कमी होने से कुल व्यय में वृद्धि तथा कीमत में वृद्धि होने से कुल व्यय में कमी हो तो माँग की कीमत लोच इकाई से अधिक होती हैै।

(ग) इकाई से कम लोच - जब वस्तु की कीमत में परिवर्तन एवं उपभोक्ता के व्यय में परिवर्तन एक ही दिशा में होता है अर्थात् कीमत में कमी होने से कुल व्यय में कमी तथा कीमत में वृद्धि होने से कुल व्यय में वृद्धि हो तो माँग की कीमत लोच इकाई से कम

4) चाप विधि

बिन्दु

कीमत

मात्रा

P

M

(P1) 5

(P2) 6

(Q1) 10

(Q2) 07



इस उदाहरण में हम देखते हैं कि माँग वक्र पर दो बिंदु के बीच माँग की लोच का मान माँग वक्र पर संचरण की दिशा में परिवर्तन के साथ बदल जाता है। ऐसी स्थिति में किसी एक बिंदु पर माँग की लोच ज्ञात न कर दो बिंदुओं के बीच माँग की कीमत लोच ज्ञात की जाती है,  जिसे माँग की चाप लोच कहा जाता है। इस विधि में कीमतों एवं मात्राओं के औसत का प्रयोग होता है। चाप विधि से मांग की कीमत लोच ज्ञात करने के लिए निम्न सूत्र का प्रयोग होता है।

माँग की कीमत की लोच को प्रभावित करने वाले कारक

1) स्थानापन्न वस्तुओं की उपलब्धता- यदि किसी वस्तु का स्थानापन्न वस्तु (जैसे कोकोकोला का स्थानापन्न पेप्सी है) उपलब्ध हो तो उसकी मांग की कीमत लोच अधिक होती है तथा स्थानापन्न वस्तु की अनुपलब्धता की स्थिति में मांग की कीमत लोच कम हो जाती है।

2) वस्तु की प्रकृति- वस्तु की प्रकृति से तात्पर्य है कि वस्तु आवश्यक वस्तु है या विलासी वस्तु। आवश्यक वस्तु जैसे दूध, चावल, ब्रेड आदि की मांग की लोच कम होती है अर्थात् ऐसी वस्तुओं की मांग बेलोचदार होती है। विलासी वस्तु जैसे कार, कुलर, पंखा आदि की मांग की लोच अधिक होती है अर्थात् ऐसी वस्तु की मांग लोचदार होती है।

3) उपभोक्ता की आय- यदि उपभोक्ता की आय का स्तर ऊँचा है तो वस्तु की मांग की लोच कम होती है इसके विपरित कम आय स्तर वाले उपभोक्ताओं के लिए वस्तु की मांग बेलोचदार होती है।

4) आय की तुलना में वस्तु की लागत- यदि उपभोक्ता अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा किसी वस्तु पर खर्च करता है अर्थात् वस्तु की लागत आय की तुलना में अधिक हो तो उस वस्तु की मांग लोचदार होगी। इसके विपरित वस्तु की मांग बेलोचदार होगी।

5) वस्तु के उपयोग की संख्या- यदि किसी वस्तु को विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग में लाया जाता है तो उसकी मांग लोचदार होती है। इसके विपरित वस्तु की मांग बेलोचदार। जैसे कोयले का उपयोग खाना बनाने का ईंधन के रूप में, ईंट भट्ठे, बिजली उत्पादन आदि में किया जाता है अतः इसकी मांग लोचदार होती है।

माँग की आय लोच (Income Elasticity of Demand)

उपभोक्ता की आय में परिवर्तन होने से किसी वस्तु की मांग मात्रा में होने वाले परिवर्तन की कोटि को मांग की आय लोच कहते है। इसे मांग मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन तथा उपभोक्ता की आय में प्रतिशत परिवर्तन के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जाता है। सूत्र से

मांग की आय लोच = मांग मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन/ उपभोक्ता की आय में प्रतिशत परिवर्तन

ध्यान योग्य बातें 

 आय लोच का चिह्न

वस्तु के प्रकार

धनात्मक

ऋणात्मक

सामान्य

घटिया


माँग की आड़ी लोच (Cross Elasticity of Demand)

किसी वस्तु की माँग मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन एवं संबंधित वस्तु की कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के अनुपात को मांग की आड़ी लोच कहते हैं।

दो वस्तु X तथा  Y के लिए माँग की आड़ी  लोच ज्ञात करने का सूत्र

Exy = वस्तु X की माँग मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन / वस्तु Y की कीमत में प्रतिशत         परिवर्तन 



माँग की आड़ी लोच का मान धनात्मक या ऋणात्मक हो सकता है। माँग की आड़ी लोच का मान धनात्मक होने से आशय है कि  वस्तुएँ एक दूसरे की प्रतियोगी हैं । माँग की आड़ी लोच ऋणात्मक होने का अर्थ है कि वस्तुएँ एक दूसरे की पूरक हैं। 

धन्यवाद 

पुरुषोत्तम कुमार पाठक 

पीजीटी (अर्थशास्त्र)

राजकीय कृत +2 उच्च विद्यालय

रमना (गढ़वा)

वहट्टसप- 8603671064   

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