अर्थव्यवस्था एवं इसके प्रकार
अर्थव्यवस्था
एक अर्थव्यवस्था आर्थिक क्रियाओं का सम्मिलित
रूप होती है जो लोगों को जीविकोपार्जन का साधन मुहैया कराती है। मानव की वे सभी
क्रियाएँ जिसका संबंध आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए सीमित संसाधनों के प्रयोग
से है, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। उपभोग, उत्पादन, विनियोग तथा विनिमय ये चार प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ
हैं।
अपनी आवश्यकता की
पूर्ति करने के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रयोग करना उपभोग है। जैसे कपड़ा पहनना, फल खाना, चिकित्सक से इलाज करवाना आदि उपभोग के उदाहरण हैं।
किसी वस्तु में नई
उपयोगिता का निर्माण करना ही उत्पादन है। रूप, जगह या समय में परिवर्तन करने से किसी वस्तु में नई
उपयोगिता का निर्माण होता है। जैसे लकड़ी के रूप में परिवर्तन करने से फर्नीचर का
निर्माण होता है। नदी तट से बालू को निर्माण स्थल तक ढुलाई जगह परिवर्तन का उदाहरण
है।
जिस आर्थिक
प्रक्रिया से मानव पूँजी या भौतिक पूँजी में वृद्धि होती है उसे विनियोग कहा जाता
है।
विनिमय प्रक्रिया
में वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद- बिक्री या लेन देन होता है। यह लेन-देन मुद्रा या
बिना मुद्रा का हो सकता है।
अर्थव्यवस्था के प्रकार
संसाधनों पर स्वामित्व एवं क्या, कैसे तथा किसके
लिए प्रश्नों पर निर्णयकर्ता के आधार पर अर्थव्यवस्था के निम्न तीन स्वरूप होते
हैं।
· पूँजीवादी या बाजार अर्थव्यवस्था-
निजी संपत्ति एवं निजी लाभ पर आधारित अर्थव्यवस्था
पूँजीवादी या बाजार अर्थव्यवस्था कहलाती है। दूसरे शब्दों कहा जा सकता है कि एक
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक संसाधनों पर एक निजी व्यक्ति या निजी संस्था का
स्वामित्व (मलिकाना हक) होता है। अर्थव्यवस्था में उन्हीं वस्तुओं एवं सेवाओं का
उत्पादन होता है जिसकी अर्थव्यवस्था में माँग तथा जिसके उत्पादन में निजी लाभ हो।
क्या, कैसे, तथा किसके लिए
उत्पादन संबंधी समस्याओं का समाधान कीमत संयंत्र के द्वारा होता है। किसी वस्तु की
कीमत का निर्धारण बाजार में उसकी माँग एवं पूर्ति की शक्तियों के द्वारा होती है।
कीमतें संतुलित कीमतें होती हैं। कीमत ही किसी उत्पादक के लिए क्या उत्पादन करने
तथा एक उपभोक्त के लिए क्या उपभोग करने संबंधी निर्णय का संकेत होती है। सरकारी
हस्तक्षेप के बिना हर व्यक्ति अकेला एवं अपने स्वलाभ को अधिकतम करने की प्रेरणा से
कार्य करता है। लोगों के स्वहित में ही समाज का हित निहित होता है। इस प्रकार की
अर्थव्यवस्था को अबंध अर्थव्यवस्था (Laissez Faire
Economy) भी कहा जाता है।
एक बाजार
अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता को राजा कहा जाता है। एक उपभोक्ता अपनी पसंद की वस्तुओं
एवं सेवाओं का उपभोग करने को स्वतंत्र होता है। वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए उसका
अधिमान उत्पादन प्रक्रिया को निर्देशित करता है।
उदाहरण- अमेरिका ,जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में बाजार या पूँजीवादी अर्थव्यवस्था
का अस्तित्व पाया जाता है।
- समाजवादी या केंद्रीकृत आयोजित
अर्थव्यवस्था-
समाजवादी या केंद्रीकृत
अर्थव्यवस्था उस प्रकार की अर्थव्यवस्था को कहा जाता है जिसमें आर्थिक संसाधनों पर
सरकार का अधिकार होता है तथा अर्थव्यवस्था की समस्याओं जैसे क्या, कैसे, और किसके लिए
उत्पादन , का समाधान सरकार
ही करती है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में उत्पादन का परम लक्ष्य जन कल्याण होता
है। सार्वजनिक उद्यमों का लाभ सरकार के पास जमा होता है जिसका उपयोग सामाजिक लाभ
के उद्देश्यों की पूर्ति में खर्च होता है।
समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन संबंधी
समस्याओं का निराकरण योजना से किया जाता है। सरकार देश के लिए उपयुक्त सामाजिक एवं
आर्थिक लाभों के निर्धारण कर वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन का निर्णय करती है।
उद्यमों को वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन संयोगों के चयन की स्वतंत्रता नहीं होती
है।
सरकार सभी लोगों
को समान कार्य का अवसर उपलब्ध कराती है अतः लोगों को अपने पसंद के व्यवसाय चुनने
की स्वतंत्रता नहीं होती। इसी प्रकार उपभोक्ता को भी अपनी पसंद की वस्तुओं एवं
सेवाओं के उपभोग करने की स्वतंत्रता नहीं होती है। वे सरकार द्वारा उत्पादित
वस्तुओं एवं सेवाओं का ही उपभोग कर सकते हैं।
वर्तमान में किसी भी देश
की अर्थव्यवस्था पूर्णतः समाजवादी अर्थव्यवस्था नहीं है। 1991 ई. के पूर्व
सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था पूर्ण रूप से समाजवादी अर्थव्यवस्था थी।
· मिश्रित अर्थव्यवस्था
मिश्रित अर्थव्यवस्था में
बाजार अर्थव्यवस्था एवं केंद्रीकृत आयोजित अर्थव्यवस्था की मिश्रित विशेषताएँ
मिलती हैं। अर्थात् इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक (सरकारी) क्षेत्र
तथा निजी क्षेत्र के उद्यम पाये जाते है। सार्वजनिक क्षेत्र के क्रियाकलाप लाभ के
उद्देश्य से संचालित नहीं होते बल्कि जन-कल्याण उनका परम लक्ष्य होता है, लेकिन
निजी क्षेत्रों में निजी लाभ के उद्देश्यों से क्रियायें संचालित होती हैं। इस
प्रकार की अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका भी मिश्रित होती है जैसे सार्वजनिक
क्षेत्रों में सरकारी नियंत्रण पुरा होता है, लेकिन निजी क्षेत्रों में सरकार की
भूमिका सीमित होती है।
उदाहरण के लिए भारत की अर्थव्यवस्था मिश्रित अर्थव्यवस्था है।
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